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*आदिवासी अंचल के स्कूलों की बदहाली*

खोंगसरा (टाटीधार) से प्रदीप शर्मा की रिपोर्ट ****आदिवासी अंचल के स्कूल की बदहाली:  बालिका शौचालय, न रसोई, बच्चों की सेहत और शिक्षा दोनों खतरे में*
बिलासपुर ज़िले के कोटा विकासखंड के दूरस्थ और आदिवासी बहुल ग्राम पंचायत टाटीधार के आश्रित ग्राम भस्को में स्थित प्राथमिक शाला भस्को बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी से जूझ रही है। यहां बालिकाओं के लिए शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे बच्चियों की सुरक्षा और उपस्थिति दोनों पर विपरीत असर पड़ रहा है।

गंभीर हालात, प्रशासन मौन
विद्यालय में सिर्फ एक शौचालय है, जो लंबे समय से जर्जर अवस्था में है और उपयोग लायक नहीं है। बच्चियों को जंगल या आसपास खुले में जाना पड़ता है, जिससे असुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।

रसोई नहीं, धुएं से भरता है कक्षा
विद्यालय में मध्यान्ह भोजन बनाने के लिए कोई रसोई कक्ष नहीं है। स्कूल के एक कोने में लकड़ी जलाकर खाना बनाया जाता है, जिसका धुंआ कक्षाओं तक पहुंचता है। इससे बच्चों की आंखों और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।

स्वच्छता का हाल बेहाल
पुराने, अनुपयोगी शौचालय में एक मरे हुए कुत्ते या गाय के सड़ने की सूचना मिली, जिससे गंभीर गंदगी और बीमारी फैलने का खतरा बना हुआ था। शिक्षक ने पहल कर सफाई करवाने की कोशिश की, लेकिन यह भी अस्थायी समाधान साबित हुआ।

गणवेश का इंतजार
स्कूल खुले एक महीने से अधिक हो चुका है, लेकिन अब तक बच्चों को गणवेश (यूनिफॉर्म) नहीं दिया गया। बच्चे पुराने, फटे कपड़ों में स्कूल आने को मजबूर हैं।

शिक्षक तो हैं, पर बच्चे घट रहे
युक्तियुक्तिकरण प्रक्रिया के बाद विद्यालय में 13 बच्चों पर 2 शिक्षक पदस्थ हैं, लेकिन नामांकन लगातार घटता जा रहा है। इससे सरकारी स्कूलों के प्रति समुदाय का विश्वास कम होता जा रहा है।

– भरत राम यादव, प्रभारी प्रधानपाठक
“बालिका शौचालय और रसोई कक्ष की समस्या हर साल ब्लॉक और जिला शिक्षा अधिकारियों को रिपोर्ट करता हूं, लेकिन आज तक कोई समाधान नहीं हुआ है।”

रामेश्वर राजू सिंह, अध्यक्ष, भाजपा मंडल बेलगहना
“आदिवासी अंचल के स्कूलों में आज भी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। मैं यह विषय जिला प्रशासन के सामने रखूंगा और ग्रामीण स्कूलों के लिए फंड जारी कराने की मांग करूंगा।”

स्वराज पटेल, सामाजिक कार्यकर्ता
“मैंने कई बार इन समस्याओं की सूचना जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को दी है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। शायद इसलिए कि यह स्कूल जंगल में है, जहां अधिकारी आना ही नहीं चाहते।”

मूलभूत सुविधा से स्कूल जूझ रहे हैं जो दुःखद है। अधिकारियों को सतत निरीक्षण करना चाहिएं जिससे व्यवास्था सुधरेगी। प्रदीप शर्मा(सामाजिक कार्यकर्ता)


भस्को जैसे गांवों के स्कूलों की स्थिति हमारे शिक्षा तंत्र की सच्चाई को उजागर करती है। जब तक बालिका शौचालय, स्वच्छ रसोई और आधारभूत सुविधाएं नहीं मिलेंगी, तब तक शिक्षा का अधिकार केवल कागज़ों में रहेगा। ज़रूरत है कि प्रशासन गंभीरता से इन समस्याओं की ओर ध्यान दे और जल्द समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाए।

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