
*शिक्षकों की नई नियुक्ति नही करना चाहती सरकार – इन्द्र साव*

*भाटापारा ग्लोबल न्यूज जुगल किशोर तिवारी की रिपोर्ट*
*स्कूलों में शिक्षकों के न्यूनतम पदों में कटौती का आदेश तत्काल वापस ले सरकार- इन्द्र साव*
भाटापारा 23 मई/नए सेटअप के तहत शिक्षकों की न्यूनतम संख्या में कटौती और युक्तियुक्तकरण के नए नियम ’’शिक्षा के अधिकारों का उल्लंघन है’’। प्रदेश की सरकार नहीं चाहती कि छत्तीसगढ़ के बच्चों को उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्घ हो सके, इसलिए निजी शिक्षण संस्थानों को लाभ पहुंचाने, सरकारी शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने का षड्यंत्र रचा गया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही 5484 स्कूल ऐसे है जो केवल एक शिक्षक के भरोसे है, 297 स्कूल पूरी तरह से शिक्षक विहीन है, पिछले सवा साल के दौरान एक भी पद नियमित शिक्षा की नियुक्ति नहीं की गयी। विधानसभा में 33000 शिक्षक के पदों पर भर्ती की घोषणा करके वह प्रक्रिया भी दुर्भावना पूर्वक रोक दी गई, अब युक्तियुक्तकरण और नए सेटअप के नाम पर हजारों स्कूलो को बंद करके शिक्षकों के पद को खत्म करने का अव्यवहारिक फैसला थोपा जा रहा है। सरकार पहले शिक्षकों को प्रमोशन दे, उनके लिये ट्रांसफर पॉलिसी तय करे, उसके बाद ही युक्तियुक्तकरण का फैसला ले। नए सेटअप के नाम पर स्कूलों में शिक्षकों के न्यूनतम पदों में कटौती का आदेश तत्काल वापस ले सरकार।
विधायक इन्द्र साव ने कहा कि स्कूलों को जबरिया बंद किए जाने से न केवल शिक्षक बल्कि उन स्कूलों से संलग्न हजारों रसोईया, स्लीपर और मध्यान भोजन बनाने वाली महिला, स्वसहायता समूह की बहनों के समक्ष जीवन यापन का संकट उत्पन्न हो जाएगा। नए सेटअप के तहत सभी स्तर प्राइमरी, मिडिल, हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों में शिक्षकों के न्यूनतम पदों में कटौती के चलते युवाओं के लिए नियमित शिक्षक के पद पर नई भर्ती के अवसर भी कम हो जाएंगे, शिक्षा के स्तर पर बुरा असर पड़ना निश्चित है। अधिनायकवादी प्रदेश की भाजपा सरकार ने इतना बड़ा अव्यवहारिक निर्णय लेने से पहले ना प्रभावित वर्ग से चर्चा की, न ही प्रदेश के भविष्य के बारे में सोचा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ही प्रदेश में 58000 से अधिक शिक्षकों के पद रिक्त है, हर महीने सैकड़ों शिक्षक रिटायर हो रहे है, कई वर्षों से शिक्षकों का प्रमोशन रूका हुआ है, स्थानांतरण को लेकर कोई ठोस पॉलिसी बना नहीं पाए समयमान वेतनमान का विवाद अब तक लंबित है ऐसे में युक्तिकरण के नाम पर शिक्षकों को डरा कर वसूली करना चाहती है सरकार।