
*भंनवारटंक से खोडरी तक फैले प्राकृतिक जंगलों की रेलवे ठेकेदार के द्वाराअंधाधुंध कटाई *
*खोगसरा ग्लोबल न्यूज प्रदीप शर्मा की रिपोर्ट*विकास नहीं विनाश: बिलासपुर–पेंड्रा रेल लाइन के बीच जंगलों की अंधाधुंध कटाई, वन्यजीवों का रहवास उजड़ा – उच्च स्तरीय जांच की मांग ग्रामीणों ने की
रेलवे की डबल और तीसरी लाइन बिछाने के लिए तय सीमा से अधिक पेड़ काटे गए। पोकलेन और जेसीबी जैसी मशीनों ने जंगलों को तहस–नहस कर दिया। नतीजा यह हुआ कि पेड़ों के साथ-साथ छोटे पौधे, झाड़ियाँ और वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास भी नष्ट हो गया।
छत्तीसगढ़ की पहचान उसके घने जंगलों और जैव–विविधता से है। लेकिन विकास के नाम पर यह प्राकृतिक धरोहर तेजी से उजड़ रही है। बिलासपुर से पेंड्रा रोड के बीच भंनवारटंक से खोडरी तक फैले प्राकृतिक जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने अब न सिर्फ पर्यावरण बल्कि वन्यजीवों के जीवन को भी संकट में डाल दिया है।
वन्यजीवों का गांवों की ओर रूख
स्थानीय लोगों का कहना है कि कटाई के कारण अब तेंदुआ, चीतल, भालू, जंगली सूअर और अन्य जानवर अपने जंगलों से उजड़कर आसपास के गांवों की ओर बढ़ रहे हैं।
इससे मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की आशंका लगातार बढ़ रही है। पहले ही इस मार्ग की रेल पटरी पर हिरन और तेंदुए की कटकर मौत हो चुकी है।
*ट्रेन से साफ़ दिखता है विनाश*
यात्री बताते हैं कि जब ट्रेन इन इलाकों से गुजरती है तो साफ़ दिखता है कि किस तरह बड़े पैमाने पर जंगल और पहाड़ों का सीना मशीनों से छलनी किया जा रहा है। लेकिन सड़क मार्ग से यह दृश्य नजर नहीं आता, इसलिए इसकी वास्तविकता छिपी रह जाती है।
*सवालों के घेरे में विभाग*
इतने बड़े पैमाने पर पेड़ काटे गए, तो आखिर ये पेड़ गए कहाँ?
वन विभाग और पर्यावरण विभाग क्यों चुप हैं?
क्या रेलवे और ठेकेदार गाइडलाइंस का पालन कर रहे हैं?
राजस्व और खनिज विभाग अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभा
रहे?
सामाजिक कार्यकर्ता की पहल
सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप शर्मा ने इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है और इसके लिए पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखा है।
उनका कहना है—
जंगल काटने से न सिर्फ पेड़ और पौधे उजड़े हैं बल्कि वन्यजीवों का पूरा रहवास खतरे में है। जानवर गांवों की ओर जाने लगे हैं, जिससे संघर्ष बढ़ेगा। यह विकास नहीं, बल्कि विनाश है। रेलवे को अपने कार्य को तय सीमा और गाइडलाइंस के भीतर सीमित करना ही होगा।””इसकी शिकायत PMO इंडिया और पर्यावरण मंत्रालय से की गई है। सुनवाई नही होने पर जनहित याचिका भी दायर की जाएगी ।
भविष्य के खतरे
वर्षा में कमी
नदियों का सूखना मिट्टी का कटाव जलवायु असंतुलन
वन्यजीव–मानव संघर्ष की बढ़ती घटनाएँ
और बड़े पैमाने पर प्राकृतिक आपदाएँ
जंगल कटने से पर्यावरण, जलवायु और वन्यजीव सभी खतरे में हैं। स्थानीय लोग और सामाजिक संगठन मांग कर रहे हैं कि रेलवे प्रोजेक्ट को गाइडलाइंस के भीतर सीमित किया जाए और इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच तुरंत करवाई जाए।



