
*पोला पर्व पर किसानों ने बैल की पूजा कर बड़ी धूमधाम से मनाया *
*भाटापारा ग्लोबल न्यूज जुगल किशोर तिवारी की रिपोर्ट**भाटापारा 23 अगस्त/ छत्तीसगढ़ के शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में पोला पर्व हमारे प्रदेश की परंपरा, संस्कृति और कृषि से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व मुख्य रूप से किसानों और पशुपालकों का पर्व माना जाता है, जिसे भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में अमावस्या के दिन मनाया जाता है। पोला पर्व का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह बैल और कृषि कार्य में सहायक पशुओं को समर्पित है। किसान इस दिन बैल की पूजा करते हैं और उन्हें सजाते और विशेष भोजन प्रदान करते हैं। बैलों को नहलाकर उसके सींगों को रंग-बिरंगे रंगों से रंगा जाता है और उनके गले में घंटियाँ, पायल और झुनझुने बाँधे जाते हैं। पूजा के बाद बैलों को दौड़ाया जाता है, इसे ही पोला दौड़ कहा जाता है। जिस दिन बच्चे भी मिट्टी के बैल को दौड़ते हैं और खुशियां मनाते हैं । अधिकांशत: घरों में छत्तीसगढ़ का पकवान ठेठरी, खुरमी विशेष रूप से बनाया जाता है । मान्यता है कि इस दिन बैलों की पूजा करने से खेती में उन्नति होती है, पशुधन निरोगी रहते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है। इस पर्व की खासियत यह है कि यह न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक एकता और सामूहिकता का भी प्रतीक है। गांव के सभी लोग मिलकर इस पर्व को मनाते हैं जिससे आपसी भाईचारा और सहयोग की भावना और मजबूत होती है।संक्षेप में कहा जाए तो छत्तीसगढ़ का पोला पर्व किसानों की आस्था, परंपरा और ग्रामीण संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। यह पर्व बैलों के सम्मान, कृषि कार्य की महत्ता, सामाजिक एकता और नई पीढ़ी को परंपरा से जोड़ने की एक अद्भुत कड़ी है। यही कारण है कि पोला केवल एक धार्मिक अनुष्ठान न होकर ग्रामीण जीवन का उत्सव और लोक संस्कृति की धड़कन बन चुका है।

