*बेलगहना केदा क्षेत्र में करेला नहीं साहब, ये करील का गोरखधंधा है*
“*बेलगहना ग्लोबल न्यूज ब्यूरो की रिपोर्ट*करेला नहीं साहब, ये करील का गोरखधंधा है!” — वन रक्षक और डिप्टी रेंजर की सहमति से हाईवे पर लुट रही जंगल की संपदा, विभाग बना ‘मौन साधु’
कोटा/बिलासपुर:-केंदाः जंगल की संपदा अब खुले बाजार में बिक रही है और जिम्मेदार अधिकारी आंखें मूंदे बैठे हैं! बिलासपुर वनमंडल अंतर्गत कोटा वन परिक्षेत्र के केंदा सर्किल में, नेशनल हाईवे के किनारे प्रतिदिन 40 से 50 किलो करील की खुली बिक्री हो रही है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह सब वन विभाग की नाक के नीचे हो रहा है — और विभाग चुप है!
ग्रामीण बोले – ‘सेटिंग पक्की है!’
स्थानीय लोगों का कहना यह है की अवैध बिक्री बिना “खर्चा-पानी” के संभव नहीं है।
आरोप सीधे तौर पर संबंधित बिट गार्ड और डिप्टी रेंजर पर लग रहे हैं,की हर रोज सौदा तय होता है करील की क़ीमत तो तौल से होती है, लेकिन “ख़ामोशी”की क़ीमत सेटिंग से तय होती है,जिन्हें व्यापारी हर हफ्ते ₹2000 से ₹3000 तक देते हैं।
व्यापारियों ने खुल कर कहा नाम नहीं बताने की शर्त में”हम हर हफ्ते खर्चा पानी देते हैं, तभी तो खुलेआम बेचते हैं। अगर ना दें तो कार्रवाई होती है।”
वन विभाग मौन… कारोबारी बेलगाम!
वनसम्पदा की इस लूट पर न कोई रोक, न कोई पूछने वाला रोजाना बड़ी मात्रा मे करील सड़क किनारे बिक रहा है,
इस बीच, करील की बिक्री धड़ल्ले से जारी है, और विभागीय मिलीभगत की बू साफ महसूस की जा सकती है।
कहा जा रहा है:
वन रक्षक को नियमित हिस्सा मिलता है,कार्रवाई सिर्फ दिखावे की,विभागीय सेटिंग से फलफूल रहा है धंधा…!
सवाल कई हैं – जवाब कोई नहीं!
क्या वनों की संपदा यूं ही लूटी जाती रहेगी?
क्या करील जैसी जंगली वनस्पति का ऐसा दोहन जायज है?
क्या वन विभाग खुद इस गोरखधंधे का हिस्सा बन चुका है?
क्या कार्रवाई सिर्फ गरीब लकड़हारे पर होती है?
जब कोई ग्रामीण एक सूखी लकड़ी उठाता है तो केस बन जाता है,
तो फिर रोज़ाना बिक रहे करील पर कोई नोटिस क्यों नहीं?
अब देखने वाली बात यह होगी की समाचार प्रकाशन के बाद कार्यवाही की गाज किसके ऊपर गिरेगी व्यापारी के ऊपर या कर्मचारीयों को बचा कर खाना पूर्ति…….!