
*भालू हमले से घायल बुजुर्ग जमुना यादव मुआवजे के लिए भटक रहा*
*अचानकमार/लमनी/ग्लोबल न्यूज प्रदीप शर्मा की रिपोर्ट*
*विभागीय जिम्मेदारों की उदासीनता न सिर्फ पीड़ित परिवारों के जख्म गहरा रही है, बल्कि शासन के भरोसे पर भी सवाल खड़े कर रही है सरकार बदलगई पर कर्मचारी एवं अधिकारियों का रवैया नहीं बदला*
*वनकर्मी के द्वारा मुआवजा की मांग करने वाले जमुना यादव के घर जाकर धमकाया जा रहा है*
*भालू हमले से घायल बुज़ुर्ग जमुना यादव मुआवज़े के लिए भटक रहे थे, अख़बार में ख़बर छपी तो वनकर्मी ने दी धमकी – अब कलेक्टर से गुहार*
*ग्राम लमनी (अचानकमार टाइगर रिज़र्व क्षेत्र) निवासी 60 वर्षीय जमुना यादव कुछ समय पूर्व भालू के हमले में गंभीर रूप से घायल हुए थे। उनके दाहिने हाथ पर गहरी चोट आई, जिसके इलाज के बाद भी वे पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाए हैं।
इलाज के बाद वे वन विभाग से मुआवज़ा दिलाने की प्रक्रिया के लिए लगातार कार्यालयों के चक्कर लगा रहे थे। लेकिन जब उनकी पीड़ा और विभागीय लापरवाही की ख़बर अख़बारों में प्रकाशित हुई, तब स्थानीय वनकर्मी (बीटगार्ड) विश्वनाथ रात्रे, पदस्थ लमनी क्षेत्र ने उनके घर जाकर उन्हें धमकाया।
जमुना यादव का आरोप- –
“मुझे विभागीय कर्मचारी बार-बार मेडिकल बिल और काग़ज़ मांग रहे थे। अस्पताल से मुझे सिर्फ छुट्टी की पर्ची दी गई, अलग से कोई बिल नहीं मिला। जब मेडिकल स्टोर से बिल लेने गया तो 3-5 हजार रुपये मांगे गए। मैं गरीब आदमी हूँ, पैसे कहाँ से लाऊँ? जब यह बात मीडिया में आई, तो बीटगार्ड विश्वनाथ रात्रे मेरे घर आकर बोले कि – अब तुम्हें कोई मुआवज़ा नहीं मिलेगा, मैं तुम्हारे अंगूठे और साइन लेकर भी तुम्हें भटकाऊँगा। जंगल में रहना है या नहीं, यह सोच लो।”
इस धमकी से घबराकर अब जमुना यादव ने मुआवज़े की मांग पर भी चुप्पी साध ली है।
*वनकर्मी रात्रे ने कहा*–
“हम तो मुआवज़े की प्रक्रिया के लिए ज़रूरी दस्तावेज (आधार, पैन, मेडिकल पेपर्स) लेने गए थे। बाकी आरोप मनगढ़ंत हैं। मुआवज़ा कब तक मिलेगा, यह हम नहीं बता सकते। हमारे उच्च अधिकारी जो निर्देश देंगे, उसी अनुसार काम होता है।”
अमर सिंह सिदार(रेंज प्रभारी-लमनी)- मुआवजा के लिए कोई हस्ताक्षर नही लेने होते। पीड़ित अपने उपचार का बिल जमा करेगा। क्लैम करते ही जिले से राशि जारी हो जाती है।
वनरक्षक ने अगर दबाव बनाया है, दुर्व्यवहार किया है तो यह उचित नही। जांच के बाद हम विभागीय कार्यवाही करेंगे।
*मामला गंभीर*
यह घटना वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
वन्यजीव हमले के शिकार बुज़ुर्ग ग्रामीण को मुआवज़े के लिए दफ्तर-दफ्तर भटकना पड़ रहा है।
धमकी और दबाव के आरोप सामने आए हैं।
और अब पीड़ित ने कलेक्टर मुंगेली से न्याय और सुरक्षा की गुहार लगाई है।
//ग्रामीणों की मांग// – वन्यजीव हमले के पीड़ितों को मुआवज़ा देने की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जाए, ताकि किसी भी गरीब ग्रामीण को बार-बार दफ्तरों के चक्कर न लगाने पड़ें और उन्हें धमकी का सामना न करना पड़े।
*जंगली जानवरों के हमले पर मुआवजा*
30 दिनों में मिलना चाहिए सहायता, पर हकीकत में भटक रहे हैं पीड़ित
वन विभाग के नियमों के अनुसार, जंगली जानवरों के हमले से मौत होने की स्थिति में मृतक के परिजनों को अधिकतम 4 लाख रुपए का मुआवजा 30 दिनों के भीतर दिया जाना अनिवार्य है। वहीं, घायल होने की स्थिति में इलाज से संबंधित दस्तावेज जमा करने के 30 दिन के अंदर आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए। इसमें घायलों को अधिकतम 59,100 रुपए तक की मदद देने का प्रावधान है।
हालांकि जमीनी हकीकत इससे उलट नजर आ रही है। भालू हमले में घायल हुए ग्रामीण जमुना यादव जैसे पीड़ित महीनों बाद भी मुआवजे के लिए चक्कर काट रहे हैं। अस्पताल से सिर्फ डिस्चार्ज पेपर मिलने के बावजूद वनकर्मी अतिरिक्त बिल और कागज की मांग कर रहे हैं। यही नहीं, मुआवजे की मांग करने पर पीड़ित को धमकाने तक की शिकायत सामने आई है।
ऐसे मामलों से यह सवाल खड़ा होता है कि जब नियम स्पष्ट हैं, तो पीड़ितों को समय पर मदद क्यों नहीं मिल पा रही है?



